ये हवा, ये जंगल, ये पानी
हुए बीते दिनों की कहानी।
दौलत का तू साहूकार है,
ये दौलत तो है आनी-जानी।
नदी, जंगल और पहाड़,
इनसे न कर मन- मानी
कल की नस्लों के लिए सोच,
कैसे कटेगी वो जिंदगानी।
ढा लिए कई सितम तूने,
अब नहीं चलेगी जो ठानी।
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !
ये हवा, ये जंगल, ये पानी
हुए बीते दिनों की कहानी।
दौलत का तू साहूकार है,
ये दौलत तो है आनी-जानी।
नदी, जंगल और पहाड़,
इनसे न कर मन- मानी
कल की नस्लों के लिए सोच,
कैसे कटेगी वो जिंदगानी।
ढा लिए कई सितम तूने,
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