कुछ और दिन,
कर प्रतीक्षा
होगा परिवर्तन
इस युग का !
किस हेतु तू
कर रहा क्षोभ
अपने कर्तव्य
पथ पर रह दृढ !
परिवर्तन तो
साश्वत नियम है
इस प्रकृति का !
बदलेगा समय
यह तो है गतिज,
कब रुका है और
कब रुकेगा !
तू व्यर्थ न कर
अंतस को उद्वेलित
बस कुछ और दिन !
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