आह;
निकल पड़े,
वेदना के स्वर
देख मानव का पतन !
मानव की
यह निष्ठुरता,
लुप्त प्राय सहिष्णुता;
पाषाण भी करता रुदन !
पर पीड़ा पर
परिहास,
निज सूत का जननी पर त्रास;
धनार्जन हेतु
निर्लज्ज प्रयास;
कर रही मानवता क्रंदन !
आह;
निकल पड़े,
वेदना के स्वर
देख मानव का पतन !
बहुत भावपूर्ण खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
यथार्थ को कहती भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंरोते रहे हम खून के आँसू.....पतन रुकता नहीं..
जवाब देंहटाएं:-(
अनु
बेहद भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंना जाने कहाँ जाकर थमेगा ये पतन का सिलसिला...
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जवाब देंहटाएंआह;
निकल पड़े,
वेदना के स्वर
देख मानव का पतन !
बहुत बेहतरीन सुंदर रचना !!!
RECENT POST: जुल्म
बहुत मार्मिक और भावपूर्ण रचना | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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निज सूत का जननी पर त्रास ही तो हो रहा है। विचारणीय।
जवाब देंहटाएं'यथार्थ' और 'करुणा' का चोली दामन का साथ !!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति वेदना की. यथार्थ को बखूबी बयान किया है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन विचार लिए अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंKAVYA SUDHA (काव्य सुधा): सपने और रोटियां
पर पीड़ा पर
जवाब देंहटाएंपरिहास,
निज सूत का जननी पर त्रास;
धनार्जन हेतु
निर्लज्ज प्रयास;
कर रही मानवता क्रंदन ....
सटीक परिभाषित किया है मानवता है ... बहुत खूब ...
बहुत सुंदर अभिवय्क्ति आपको बधाई
जवाब देंहटाएंहाँ! बस एक आह...
जवाब देंहटाएंधर्नाजन के लिए मानवीय भाव खोते जाने का वास्तविक वर्णन। सहीष्णुता का लुप्त होना होना और पाषाण का रूदन करना मनुष्य की निष्रुता को और गाढा करता है।
जवाब देंहटाएंdrvtshinde.blogspot.com
आह;निकल पड़े,वेदना के स्वर देख मानव का पतन !................बहुत सही बात
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