प्रिये !
तुम जब से चले गये;
रजनी निज मन को व्यथित कर;
थिर अन्तस् को स्वर प्लावित कर
मानो
निश्छल प्राण छले गये !
प्रिये !
तुम जब से चले गये;
नहीं सुध है अब जीवन की,
न ही कामना कोई मन की,
किंचित
तुम तो भले गये !
प्रिये !
तुम जब से चले गये;
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत खूब सुंदर अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
वाह बहुत ही सुंदर और भावमय रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
दो और दो पांच का खेल, ताऊ, रामप्यारी और सतीश सक्सेना के बीच
Abhaar dr. sahab.
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव युक्त रचना !
जवाब देंहटाएंlatest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
सुन्दर संक्षिप्त सम्पूर्ण भाव....
जवाब देंहटाएंकिसी का जाना कभी कभी कितना खलता है
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुन्दर !
किसी के न होने ... या चले जाने का दंश और फिर जब प्रिय ही न हो तो उसका न होना तो आत्मा निकाल देता है .... भाव मय प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में गहन भाव ......
जवाब देंहटाएंबेहद मर्मस्पर्शी
sundar shabd
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