सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कोरोना और हमारा देश



कोरोना एक महामारी के साथ हमारे मुँह पर एक झंनाटेदार तमाचा भी है।

हमने कभी स्वयं को इतना सुरक्षित बनाने की दिशा में प्रयास ही नहीं किए।


पिछले साल से ही यदि हम कुछ सीख पाते तो यह भयानक स्थिति शायद न होती।

लेकिन हम कहाँ सीखने वाले।


अब भी समय है आने वाली पीढ़ियों के लिए इस प्रकृति को बचा लें 

अन्यथा हम नहीं बच पायेंगे। 

जीवन जीने के लिए मूलभूत संसाधन प्रकृति ने निःशुल्क प्रदान किए हैं 

हमारा अब दायित्व है कि इसे संरक्षित करें। 

अभी भी समय है स्वयं को और आने वाले कल को सुरक्षित  कर लें।


“Perhaps we have learnt wrong definition of success once again think and find true value of that meant.”

टिप्पणियाँ

  1. सही कहा आपने।
    हम अभी भी ठोकर से कुछ नहीं सीखे।
    मैंने प्रकृति के सहयोगी के तौर पर अभियान चला रखा है। इसी अभियान पर आधारित ब्लॉग भी बनाया। आप चाहो तो इसके तहत इससे जुड़ सकते हो।
    ब्लॉग का लिंक पौधे लगायें धरा बचाएं

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ क...

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।