व्यर्थ होता कलियों पर
भ्रमरों का गुंजन ,
व्यर्थ होता ऋतुराज का
धरा पर आगमन/
व्यर्थ होता मयूरों का नर्तन,
कौन सुनता उरों का स्पंदन,
यदि होते न लोचन \
श्रृंगार सुषमा हीन
पुष्प पल्लवी होती ,
यह प्रकृति सुंदरी ,
विधवा सी रोती,हेतु अस्तित्त्व यह
मौन धरा सोती
अर्थ हीन होता
सृजेयता का सृजन ,
यदि होते न लोचन \
सुन्दर!
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