प्रात ही मैं
रवि रश्मियों से
होकर आलोकित /
जीवन में मृदुल
मुस्कान भरने हेतु ,
हुआ था मुकुलित/
नव चेतना लाने को
नव उमंग भरने हेतु ,
करने को मन पुलकित/
आशा थी
जीवन के लघु पलों में ,
इतिहास रचूंगा /
बनूँगा मैं
किसी के जीवन का आधार,
स्व को न निराश करूंगा/
जोडूंगा एक नया
अध्याय ,
नव युग का विश्वास बनूँगा /
पर झंझा के
तीक्ष्ण थपेड़ों ने
अंग - प्रत्यंगों को कर दिया विदीर्ण /
आशा के प्रतिकूल
रहा निराशमय जीवन
तन मन हुआ छीर्ण
व्यतीत हुए तीनों काल,
आलम्बन भी अब ,
हो चला जीर्ण /
भाग्य का अभीशाप कहूं
या पूर्व जन्म का प्रायश्चित
या तो हुआ न वनमाली को गोचर ,
या राह गया मैं अवसर से वंचित /
बन सका न कृपा पात्र किसी का
अटवि में पड़ा रह गया कदाचित
कौतूहल से होकर भ्रांत,
प्रारब्ध को लब्ध मान,
जीवन कर्म को कर्तव्य जान
निर्वाद से होकर भ्रांत ,
हेतु अस्तित्त्व की पहचान ,
कर रहा मैं जीवन दान /
यही है मानव तेरा भी जीवन
मानवता हेतु , अब तू भी
कर ले लक्ष्य संधान /
हे! अतिगव,
कृतान्त से अब न
मुख मोड़
लक्ष्य प्राप्ति हेतु
तू अब न
कर्तव्य पथ छोड़,
कर कृतार्थ जीवन को
निज प्राण को
निर्वाण से जोड़/
शब्द प्राचुर्य और समृद्ध भाव... सौन्दर्य के नए प्रतिमान गढ़ रहे हैं... सुन्दर सृजन! बधाई!!!
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
कर कृतार्त जीवन को
जवाब देंहटाएंनिज प्राण को
निर्वाण से जोड ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।