जिन्दगी भर जीता रहा जिन्दगी;
फिर भी समझ न आयी जिन्दगी !
मेरे अरमानों को लोग दफनाते गये;
नये-नये रास्ते चलने को बतलाते गये;
रोज नया मोड़ लाती गयी जिन्दगी !
यूँ तो जख्मी सारा जहाँ ही था,
जीने को जमीं न आसमाँ ही था;
फिर भी चलती ही जा रही जिन्दगी!
कभी एक पहेली- कभी एक सवाल है
फलसफा कभी, दर्शन तो कभी वबाल है!
सबको उलझाती जा रही है जिन्दगी !
जिन्दगी भर जीता रहा जिन्दगी;
फिर भी समझ न आयी जिन्दगी !
फिर भी समझ न आयी जिन्दगी !
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें