बेवजह भटक रहा तू तलाश में, वो वफा अब जमाने में न रही। मोहब्बत बस नाम भर की है यहाँ, वो दीवानगी दीवाने में न रही। घड़ी भर को जो भुला दे,ऐ साकी, वो मयकशी मयखाने में न रही। किस्से भी फाख्ता हुये रांझों के, कशिश हीर के फसाने में न रही। बेवजह भटक रहा तू तलाश में, वो वफा अब जमाने में न रही।
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !