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शब् गुजरने की देर भर है...

 जुल्मे-उल्फ़त है मुख़्तसर,

शब् गुजरने की देर भर है।


थोड़ी देर और ठहर अभी,

धुप्प तारीक राहे -गुजर है।


सहे न जायेंगे अब सितम,

पेश कलम होने को सर है।  


हिज्र से मुत्मइन है ज़माना,

इश्क में हाशिल यही ज़र है। 


है ये इन्तेहाँ दहशत की,

रोक दे अब तू इंसां गर है। 

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