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तेरे कूचे से हम जो गुज़रे

तेरे कूचे से हम जो गुज़रे, ज़माना फिर से गुज़र गया। इक सूखा सा दरख्त कोई, हरा हो फिर से शज़र गया। कोई लम्हा टिक कर रहता नहीं, सन्नाटा सदियों का पसर गया। तीरगी क्या थी जुम्बिशों की जिसमें डूब ही समंदर गया ।