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मार्च, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जबसे तेरा अस्क मुझमें दिखने लगा है !

अब मुझे आईने से डर लगने लगा है , जबसे तेरा अक्स  मुझमें दिखने लगा है ! अक्सर मेरे ख़याल मुझसे ये सवाल करते हैं , इधर तू कुछ बदला-बदला दिखने लगा है ! इक मुद्दत हुयी खुद को भूले हुए मुझे, अब तो जर्रे-जर्रे में तू ही तू दिखने लगा है ! गम-ए- दर्द का इल्म ही न रहा दिल को , जबसे तेरे अश्कों में आबे- हयात दिखने लगा है ! कहाँ है खुदा और किसे करूं सजदा यहाँ, अबतो मेरे अजीज में ही खुदा दिखने लगा है ! अब मुझे आईने से डर लगने लगा है , जबसे तेरा अस्क मुझमें दिखने लगा है !

अधूरे समाज

प्यार तुम्हें भी था प्यार हमें भी था, जीना हमें भी था जीना तुम्हें भी था ! नियमों पर चलना पड़ा समाज से बचना पड़ा हमें भी यहीं रहना था तुम्हें भी यहीं रहना था भले ही हम अधूरे हैं पर समाज तो बचे हैं और इन्हें बचाना ही है समाज तो बनाना ही है ! नियमों को न तुम तोडना नियमों को न हम तोड़ेंगे ; पुराने रास्तों को न छोड़ना न ही हम इन को छोड़ेंगे! क्योंकि आने वाले समय में कहीं समाज बदनाम न हो जाय! प्यार भला कोई जिन्दगी है जो इसके बिना न जिया जाय !

"Just got here, And soon confessed to"

Just got here, And soon confessed to We ask you to have many moments of the grievance, Are you saying he's putting us era Heart is not filled yet .......... And have started to hurt / Just got here, And soon confessed to Eye's regrets is not seeing us, Peace is one of my regrets, I do not get agreement, Loneliness and eyes ........... Has told you to be betrayed / Just got here, And soon confessed to Do not leave my desires go unfulfilled; You are a dream, not just the mouth turn down, Aye just remember that ............... And has told you to forget / Just got here, And soon confessed to

"A Wait of Hope for Her Faith ---"

Just now If He is To come by saying, Just Have passed Only a few years, Anything Not Is the dry Open the Let it be The gate of the house ..... Just now If He is To come by saying, Every - To hurt; Hooked up, Stunning Says Moment Keep patient, Deceptively Not all mind, Where Is broken Spring is awaited .......... Just now If He is To come by saying, Just Eyes only Have petrified Where End Has come Yet Of the Holocaust Where reduced Is dominated, See I Around the eyes ................. Just now If He is To come by saying,

सृजेता की भूल

खिला हुआ पुष्प और बहता हुआ पवन, किसी से नहीं करते असमानता का आचरण ! फिर तुम क्यों अपनी नस्ल को बदनाम करने पे तुले हो ! जबकि स्थाई न तो पवन की शीतलता है और न ही पुष्प की मनमोहक सुगंध और तुम्हारा जीवन ! और हाँ तुम्हे  गुमान किस बात का ? तुम से तो शीतलता  और सुगंध दोनों की उम्मीद भी नहीं ! तुम्हें बनाकर उसे भी अब  अफ़सोस हो रहा होगा  काश तुम्हारे स्थान पर  एक वृक्ष या कोई  चट्टान रची होती  जो कुछ तो देती इस  सर्जना को !  

"धरती का जीवन"

नदी के कूल में, करती अठखेलियाँ ; जाने कहाँ लीन हो गईं वो अल्लढ उर्मियाँ ! पूनम के चाँद की वो शीतल चांदनी रात रानी की मादक महक ; पपीहा का चिर 'पी कहाँ ' का स्वर , न जाने कहाँ विलीन हो गया ! सिक्के ढालने वाले कल कारखानों का कर्ण विदारक शोर; और इनसे विसर्जित विषैला रसायन; जीवन को कर अशांत और विषाक्त ! कर दिया रिक्त और सिक्त निस्त्रा को; धूमिल हो गयी धुएं से वो चांदनी रातें और उजड़ गये धरती का शृंगार करने वाले; उपवन और नभचर ! कितना हो गया परिवर्तित इस धरती का जीवन!

वर्जित फल !

इश्क जिसे कहते हैं होता है रूहानी ; पर जिस्मों के मिलन से ही, हो पाता है पूर्ण और यथार्थ !! जिस्म  में सुलगती रूहों के लिए क्यों होता है जरूरी जिस्मों का मिलन ; फिर भी कहते नापाक होता है जिस्मानी  इश्क ! जबकि कायनात की है सबसे अपरिहार्य जरूरत !! होता गर रूहानी इश्क मुत्मईन रूहों के मिलन का पर्याय ; तो क्यों छोडनी पडती जन्नत खाने पर वर्जित फल ! और क्यों होता आगाज इस कायनात का !    

परतन्त्रता !

उड़ते हुए  पक्षियों को देख कर ! सोंचता हूँ क्यों नहीं  मिले मुझे भी ये पर ! नाप लेता मै भी , अनंत आकाश की विशाल सीमा को ! और लिख देता अतृप्त अभिलाषा का सम्पूर्ण इतिहास ! पर डर जाता हूँ, जब निरीह पक्षियों को देखता हूँ पिजड़ों में असहाय और बेबस ! फिर सोंचता हूँ कि ये मानव अच्छे हैं या कि ये बेचारे पक्षी ! नहीं कोई भी संतुष्ट और स्वतंत्र नहीं है , पक्षियों से भी ज्यादा परतंत्र हैं कुछ मानव ! जो सहते हैं मात्र औ मात्र अत्याचार ! न उन्हें उड़ने की स्वतन्त्रता है न ही उनके पास एक पिजड़े जैसा घर और छोटी कटोरियों में खाना, और पीने का पानी !

सदियों सभ्यता की पारम्परिक धारा !!

अब तो सूखी नदी  और उजड़े चमन के  निशां भी नहीं मिलते ! बड़ों को ताऊ, काका और काकी , माँ भी नहीं कहते !! शायद नदी की तरह ही सूख रही है हमारी सदियों सभ्यता की पारम्परिक धारा !! औरों के लिए तो कहा ही क्या जाय जब अम्मा -बाबू के चरण छूना हीन महसूस करता है!! कान्वेंट का सपना सभी माँ-बाप  करते अपने बच्चों के लिए, भले ही संस्कार मूल्य हीन हो जाय !! नहीं बुरा है औरों की सभ्यता और संस्कृति पर अपनी जननी और जन्मभूमि का अपमान किसे होगा सहन, कौन  देख सकेगा तडपते हुए अपने अम्मा-बापू को !!

अतृप्त मन !!

जिन्दगी इतनी  उदास क्यों है? सब कुछ तो है  रोती कपड़ा  और मकान ! फिर खटकती है  कमी किसकी अब  क्या नहीं  है  तुम्हारे पास ! शायद वो स्पन्दित  करुनामय हृदय  नहीं रहा अब , तभी तो एक  मशीन के तुल्य  चला जा रहा है  तुम्हारा जीवन ! समेत ली पूरी  दुनिया की दौलत, भर लिए खजाने  और बन गये  यशस्वी और  माननीय अधिपति ! लेकिन नहीं बन पाए  अपने पिता के  सच्चे सपूत और अधूरी रह गईं  उनकी आशाएं  जिनके लिए रचा था  उसने तुम्हें और  दिया था  अपनी सबसे सुंदर  सर्जना को संवारने का  पुन्य कार्यभार ! शायद इसी लिए  उदास है तुम्हारी जिन्दगी  और तुम्हारा ये अतृप्त मन !!

जीवन रहस्य !

बना कर बंधन , कर दिया संकुचित जीवन को! फिर करते आशा एक स्वतंत्र जीवन यापन की भाग्य, भगवान धर्म, पाप और पुन्य जैसे भयानक बन्धनों से बांध कर! और बनाकर कुछ वर्जनाएं और यातना, कर देते निष्प्राण स्वयंभू जीवन को ! पर  जीवन तो स्वतंत्र होकर ही हो सकता है सार्थक, जो स्वयं के लक्ष्य को जानकर , कर सकता है प्राप्त ! लेकिन सदियों में कभी कोई जीवन शायद ही जी पाया हो और प्राप्त कर लिया हो उस चिर रहस्य के गह्वर सूत्रों को , और हो गया हो सिद्धार्थ उसका जीवन !!

जीवन पहेली

जीता चला जाता हूँ जिन्दगी जो मिलती जिस ढंग से यहाँ , लोग समझते हैं कितनी आसान है जिन्दगी इंसान की , पर सोंचते हैं जब वो अपने जीवन के लिए , हो जाती राहें विह्वर ! आह्लाद और व्यथा के पाश से होकर पाशित , भ्रमित व्योमोहन में ! पर मिल जाता जिन्हें लक्ष्य उनके जीवन का कृतार्थ हो जाते वे धन्य !