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मई, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हाईकु

१- अंतर्मन में     कैसा है व्योमोहन,    व्यग्र जीवन ! २- होकर रिक्त     क्यों बना त्यक्त,    बन अच्युत ! ३- पाणि कृपाण     कर ग्रहण,     हेतु तू प्रहरण ! ४-   कर  मनन ,      व्यर्थ न हो जीवन !      तज नन्दन ! ५- है प्रभंजन      क्रूर काल भंजन      हो प्रद्योतन!

जख्म

मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना, मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है ! रंज-ओ-गम के इस माहौल से गमगीन था बहुत , बदलेगा ये भी वक्त,  इसे बस समझाया भर है ! मत  भटक तू इंसानों की खोज में इस जमीं पर, एक खूबसूरत धोखा है ये दुनिया, बताया भर है ! परेशां है तू अपने मुकद्दर से जब इस कदर, अभी तो अपनी मोहब्बत को जताया  भर है ! किस -किस को जाहिर करेगा अपने जख्मों को, सभी  ने  लहू के अश्कों से  तुझको रुलाया भर है! मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना, मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है !

कुछ और दिन,

कुछ और दिन, कर प्रतीक्षा  होगा परिवर्तन  इस युग का ! किस हेतु तू  कर रहा क्षोभ  अपने कर्तव्य  पथ पर रह दृढ ! परिवर्तन तो  साश्वत नियम है  इस प्रकृति का ! बदलेगा समय  यह तो है गतिज, कब रुका है और कब रुकेगा ! तू व्यर्थ न कर  अंतस को उद्वेलित बस कुछ और दिन !

शब्द : अर्थ और नये आयाम !

शब्द, ध्वनि  व  अर्थ  में, रखता  है विलक्षण  अस्तित्व. शब्द, जीवन  व कर्म  में प्रकट करता है यथार्थ व्यक्तित्व. शब्द, उत्पन्न करता है अंतर्मन  में, संशय- विस्मय. शब्द, हो जाया करता है प्रायः  बहु अर्थी गह्वर, रहस्यमय ! शब्द, स्थापित करता है जाने-अनजाने कितने ही सम्बन्ध शब्द, विच्छेदित करता है कितने ही पुराने किये हुए अनुबंध !.

महफ़िल में आज उनकी

महफ़िल में आज उनकी, कुछ यूँ अंजाम होना है ! जैसे कत्ल मेरा सर-ए-आम होना है! महफ़िल-ए-रौनक में बस परवाने को बदनाम होना है ! महफ़िल में आज उनकी.................! क़त्ल और कातिल दोनों में मेरा ही एक नाम होना है ! महफ़िल में आज उनकी.................! अदाएं ही कुछ ऐसी हैं, यार की, यही हश्र-ए- अंजाम होना है ! महफ़िल में आज उनकी.................!

"प्यास"

बूँद कतरा-कतरा तरसती रही प्यास को, साकी रिंद को यूँ ही तसल्ली देता रहा ! कभी प्यास तो कभी रिंद की खुद्दारी थी दुश्मनी का ये सिलसिला ता-उम्र चलता रहा ! एक दूजे को  मिटाने की हसरत का ख़्वाब, नाहक ही दोनों के अरमानों में पलता रहा ! साकी भी था, महफ़िल भी  और रिंद भी, फिर भी पैमाना लबों के लिए मचलता रहा ! बूँद कतरा-कतरा तरसती रही प्यास को, साकी रिंद को यूँ ही तसल्ली देता रहा !

वख्त ( भाग्य )

हश्र कुछ यूँ हुआ जिन्दगी की किताब का , मैं जिल्द संवारता रहा और पन्ने बिखरते गये ! जिश्म में बाकी रही जान  भर  खालिस और, रूह के हर वो कतरे पल-पल तडपते गये ! नुमाइश क्या करता मैं जख्मों का जहाँ में, हर वो इरादतन- हादसे तजुर्बों में ढलते गये ! कोई मौला न मिला मेरी दुआओं को  ख़्वाब-दर-ख्वाब आँखों से बिछड़ते गये ! मुझे मंजिल मिलने  का गम नहीं यारों, थक गयी जिन्दगी और रास्ते बदलते गये !

इस पत्थर के शहर में

इस पत्थर के शहर में  तुम कैसे रह पाओगे ! यहाँ का शोर अन्नत के  सन्नाटे में विलीन हो जाता है  तुम्हारी चीखों को कौन सुनेगा ? कुछ भी बोलोगे तो तुम भी  पत्थर के हो जाओगे  इस पत्थर के शहर में  तुम कैसे रह पाओगे ! यहाँ दिल वाले तो हैं  पर दिल की बीमारी को ढोते हैं  रातों में वो जगते हैं  दिन के उजाले में सोते हैं  इनसे नाता जोड़ोगे तो  तुम भी तुम से  खो जाओगे इस पत्थर के शहर में  तुम कैसे रह पाओगे ! हर गलियों में लाशें बिछी हैं  हर राहों पर आहों ने दम तोडा है  रोटी की खातिर सब ने यहाँ  अपने अरमानो को छोड़ा है  इन राहों पर कैसे तुम चल पाओगे  इस पत्थर के शहर में  तुम कैसे रह पाओगे !