जीना चाहते हो! क्या जीने की जिजीविषा शेष है तुममें या समयपूर्व मर चुकी है !! जब तुमें संवेदनाओं की अनुभूति ही नहीं होती तो फिर जीवन और मृत्यु में क्या अंतर शेष है? फिर क्यों जीना चाहते हो ! पर अफ़सोस हर कोई जीवन की जिजीविषा में जीवन को लक्ष्य हीन बना कर मृत प्राय हो गया है ! न जाने कब पल-दो-पल का ही लक्ष्य पूर्ण जीवन जी पायेगा ये भ्रमित मनुष्य !
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !