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किसे ढूंढते हैं, ये सूने नयन ?

किसे ढूंढते हैं, ये सूने नयन ? स्मृतियों में क्यों, हो रहे विह्वल , किस हेतु उन्मीलित, हैं ये अविरल / स्पंदन हीन हृदय , औ नीरद अयन किसे ढूंढते हैं, ये सूने नयन ? अछिन्न श्वासें  ढोकर ये जीवन, भ्रमित भटका  कोलाहल, कानन/ कब मिलेगा मुझे, वह चिर शयन! किसे ढूंढते हैं, ये सूने नयन ? श्रांत हो चली अब, ये आहत सांसें , होगा  कब मिलन पूर्ण होंगी आशें! अपूर्ण रहा कुछ शेष , है अपूर्ण मिलन ! किसे ढूंढते हैं, ये सूने नयन ?

लहू के रंग

कलम की स्याही  लाल हो गयी स्याह से; धमनियों का रंग  नीला होता जा रहा है! धरती शोले उगल रही; और आसमान  गर्म लोहा बरसा रहा है; ये सब इंसान के  निर्जीव ह्रदय की  संवेदन हीनता के  परिणाम हैं! घर के चूल्हे में, सिकने वाली रोटियां, अब राजनीतिक मुद्दों पर सेंकी जाती हैं; जिनसे राज नेताओं की भूख और तेज होकर  निगल रही है  गरीब जनता के मुह के निवाले भी! मुट्ठी भर मातृभूमि की मिटटी जो थी कभी माँ तुल्य आज माँ भी बिलख रही है अपने आंचल की  रक्षा के लिए जिसे तार-तार  करता जा रहा है  उसका ही बेटा!