कलम की स्याही
लाल हो गयी स्याह से;
धमनियों का रंग
नीला होता जा रहा है!
धरती शोले उगल रही;
और आसमान
गर्म लोहा बरसा रहा है;
ये सब इंसान के
निर्जीव ह्रदय की
संवेदन हीनता के
परिणाम हैं!
घर के चूल्हे में,
सिकने वाली रोटियां,
अब राजनीतिक मुद्दों पर
सेंकी जाती हैं;
जिनसे राज नेताओं की
भूख और तेज होकर
निगल रही है
गरीब जनता के मुह के निवाले भी!
मुट्ठी भर मातृभूमि की मिटटी
जो थी कभी माँ तुल्य
आज माँ भी बिलख रही है
अपने आंचल की
रक्षा के लिए
जिसे तार-तार
करता जा रहा है
उसका ही बेटा!
गहन भाव ,सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है..
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद स्थिति है पर बिलकुल सच लिखा है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंकठोर सत्य
सर्वोत्त्कृष्ट, अत्युत्तम लेख आभार
जवाब देंहटाएंहिन्दी तकनीकी क्षेत्र कुछ नया और रोचक पढने और जानने की इच्छा है तो इसे एक बार अवश्य देखें,
लेख पसंद आने पर टिप्प्णी द्वारा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
MY BIG GUIDE
very nice thoughts and perfectly present . congrats.
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