रात का हिसाब माँगने जब चाँद, आयेगा तुम्हारे पास ! सांसों की गर्म तपिस में झुलसी वो बिस्तर की सलवटें कैसे बयाँ कर पाएंगी गुजरी रात की वो दास्ताँ ! अपलक आँखों से इन्तजार में गुजार दी जो तुमने वो रात अपने चाँद के लिए !! तुमने तो पढ़ लिए थे, काम के सभी सूत्र अपनी आँखों के स्वप्न में ! टूट चुका था बदन मिलन की कल्पना से, रह गयी थी शेष वेदना आछिन्न ह्रदय में ! आया जब चाँद खिड़की पर तुम्हारी वह भी कराह उठा, देख कर उदास रात को ! चला गया वापस प्रेयसी को उदास पाकर: डर था उसे कहीं देर से आने का हिसाब न देना पड़ जाय उसे !!
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !