सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मयकशी मयखाने में न रही

 बेवजह भटक रहा तू तलाश में, वो वफा अब जमाने में न रही। मोहब्बत बस नाम भर की है यहाँ,  वो दीवानगी दीवाने में न रही। घड़ी भर को जो भुला दे,ऐ साकी, वो मयकशी मयखाने में न रही। किस्से भी फाख्ता हुये रांझों के, कशिश  हीर के फसाने  में न रही। बेवजह भटक रहा तू तलाश में, वो वफा अब जमाने में न रही।

बंटाधार

 सत्ताधारी हो गये हैं सत्तालोलुप , सांठ -गाँठ   और लेन -देन के बिना चलता ही नहीं कुछ काम।   अस्पताल , स्कूल थाना या कोई भी सरकारी संस्थान, सब जगह फैला है भ्रष्टाचार। नहीं,नहीं इसका नाम लेकर न करो इन्हें बदनाम यही तो है आजकल का शिष्टाचार।   व्यभिचार और भ्रष्टाचार का कोढ़ फैल चुका है समाज के नश -नश में , नहीं दिख रहा कोई उपचार , क्या करे कोई , जब सब होगये स्वार्थवश लाचार। कुछ नहीं हो सकता इस राम सहारे रामराज का या तो जनता सो रही है, या फिर रोज़ी -रोटी के फेर में रो रही है।   आज नहीं तो कल होना है बंटाधार। 

सरफ़रू कर ली

  गुजर-बसर हमने कुछ यूँ करली,  खुद ही जिंदगी बेआबरू करली  ढूंढते रहे सकूं उम्रभर जहां में, आखिर गमों की जुस्तजू करली । वीराने में किसको सुनाऊं दास्तां, खामोशियों से ही गुफ़्तगू करली। इश्क करने को कई खुदा थे जहां में फिर तेरे ही बुत से सरफ़रू कर ली। जाहिर है सुल्ह-जू नहीं श़फ़क पे, नूर-ए- इलाही को चार-सू कर ली।

शब् गुजरने की देर भर है...

 जुल्मे-उल्फ़त है मुख़्तसर, शब् गुजरने की देर भर है। थोड़ी देर और ठहर अभी, धुप्प तारीक राहे -गुजर है। सहे न जायेंगे अब सितम, पेश कलम होने को सर है।   हिज्र से मुत्मइन है ज़माना, इश्क में हाशिल यही ज़र है।  है ये इन्तेहाँ दहशत की, रोक दे अब तू इंसां गर है। 

भूखे और बेबस

इस बार भी एक विशिष्ट जनों का दल जा रहा है यूनेस्को की अंतर्राष्ट्रीय बैठक में हर बार की तरह , इस बार भी कूड़े से कबाड़ बीनने वालों की शिक्षा और स्वस्थ्य होंगे मुद्दे विशेष। ऐसे गंभीर मुद्दों पर चर्चाएं भी तो होती हैं महत्त्वपूर्ण , सदियों से चली आ रही परिपाटियां और अवधारणाएं।   शिक्षा और स्वास्थ्य जब होजायेगा सुलभ और शोषित हो जायेगा शिक्षित , फिर कहाँ बचेगा कोई भूखे पेट मजदूरी करने वाले मजदूर, आखिर विकास का भार भी तो हैं इन्ही के कर्णधारों पर। बची रहे गरीबी तो बचा रहेगा गरीब मर्ज के लिए मरीज का होना भी तो जरूरी है।   हाँ चर्चा होगी हर बार की तरह इस बार भी इन भूखे और बेबस बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर।

जुमलों का बाजार

 ले - दे कर सांसें ,हम जी लेंगे,   झांसों के प्याले , हम पी लेंगे। तेरी हाँ में हाँ मुनासिब नहीं, तेरी रज़ा है तो, लब सी लेंगे।   तेरे वादों से उठ गया यकीं, तू कहे तो कर यह भी लेंगे। क्या बाजार सजायी है जुमलों की, लुत्फ़ इन जुमलों का हम भी लेंगे।   क्या करेगी ये अवाम पढ़-लिख कर , सौ ग्राम राशन पर सब जी लेंगे। ले - दे कर सांसें ,हम जी लेंगे,   झांसों के प्याले , हम पी लेंगे। 

लोनाई और अगरिया

भोजन में नमक उतना ही अपरिहार्य है , जितना कि जीवन में लोनाई ! साल्टेड लेज चिप्स के साथ  रेड लेबल की चुस्की लेने वाले टेस्ट ( स्वाद)  की बातें तो खूब करते हैं पर उन्हें जोगनीनार के अगरिया परिवारों के दर्द से कोई वास्ता नहीं ! मिल जाता है जितनी आसानी से नमक उतना आसान  नहीं है नमक बनाना। पीढ़ी दर पीढ़िया खप  रहीं हैं   कच्छ के तटों पर।  शब्दार्थ :  अगरिया- नमक की खेती करने वाले, जोगिनीनार - कच्छ का एक गाँव।  

मावस काल

यह समय एक धुप्प अँधेरे का समय है जहाँ रौशनी का गला रेत  दिया गया है कुछ लोग अपने -अपने बुझे हुए चिराग लिए खड़े है एक निश्चित दूरी पर सहमे हुए। एक हकवारा हाथ में लिए हुए लंबा चाबुक बेख़ौफ़ लहरा रहा है हवा में , डरे सहमे हुए लोग सर झुकाये खड़े हैं नहीं जुटा पा रहे हैं हिम्मत अपने चिरागों को जलाने की बस दबी हुयी आवाजों में बंधा रहे हैं ढांढस और दे रहे हैं झूठी तसल्ली एक दूसरे को। और सब यह जानते भी हैं यह समय एक धुप्प अँधेरे का समय है जहाँ रौशनी का गला रेत  दिया गया है

पानी और पहाड़

 पहाड़ों पर देवदार और कुटज के जंगलों में , अक्सर ले जाया करते थे घाटी में रहने वाली जनजातियों के चरवाहे , अपने-अपने भेड़ - बकरियों के झुंडों को। । कहीं- कहीं उन जंगलों के पहाड़ों से रिसता था   मीठे पानी का स्रोत । कितना शांत और प्रफुल्लित होता था पहाड़-पानी और जनजातियों का समागम। न थी कहीं पर घृणा और न ही था कहीं पर लोभ -क्षोभ। अब तो बस इमारतें और बस इमारतें ही हैं चारो तरफ, जिनमे भरा है लोभ-अहम् अपने -पराये का वहम।  

फेरीवाला

  ये जो नुक्कड़ पर गली के फेरी वाला खड़ा है , जानते हो कौन है वो ? उसके काँधे पर जो लटका हुआ झोला है उसमें  भरी हुयी है एक बेहद उम्दा किस्म की अफ़ीम। जिसे वो बेचता नहीं है सुंघाता है वो अवाम को जिसके नशे में मदहोश होकर बेचारी जनता भूल जाती है अपनी प्यास और भूख।   इस बार उसके झोले में दो किस्म की अफीम है जो उगाई गई है एक ही मिट्टी  में।   लेकिन फ़र्क  ये है इसके अपने अपने तलबगार हैं। 

हम और हमारा भोजन

  सबसे पहले हम यह जान लें की हमारे लिए सबसे जरूरी हमारा शरीर और इसका स्वास्थ्य है। इसके लिए आवश्यक है कि हम आवश्यकता के अनुसार भोजन लें जोकि   वायु , जल , और खाद्यान से प्राप्त होता है। अब प्रश्न यह है कि   हमारे लिए क्या और कितना भोजन आवश्यक होता है ? यह निर्धारित करने के लिए हमें अपने शारीरिक क्षमता , श्रम और वातावरण के अनुसार भोजन को ग्रहण करना चाहिए। भोजन के साथ साथ हमें भोजन की मूल अवस्था ( नेचुरल फॉर्म ) का सबसे अधिक ध्यान रखना होगा।                                                 सुने स्वयं के शरीर की अक्सर हम रायचंदों और व्यावसायिक चिकित्सकों के मतानुसार दवाईयों और उनके द्वारा बताये गए उपचार के भ्रम में आकर अच्छे भले स्वास्थ्य का सत्यानाश कर लेते हैं।    जबकि हमारे शरीर   का स्व - तंत्र   पर्याप्त चिकित्सक है।   हमारे शरीर पर ग्राह्य भोज्य के प्रभाव   उसके रूप और अवस्था के अनुरूप पड़ते हैं।   और इस के लिए हमारी   सोच   भी अपना अभिन्न योगदान करती है।