जहाँ रौशनी का गला रेत दिया गया है
कुछ लोग
अपने -अपने बुझे हुए चिराग लिए
खड़े है एक निश्चित दूरी पर सहमे हुए।
एक हकवारा
हाथ में लिए हुए लंबा चाबुक
बेख़ौफ़ लहरा रहा है हवा में ,
डरे सहमे हुए लोग
सर झुकाये खड़े हैं
नहीं जुटा पा रहे हैं हिम्मत
अपने चिरागों को जलाने की
बस दबी हुयी
आवाजों में बंधा रहे हैं ढांढस
और दे रहे हैं झूठी तसल्ली
एक दूसरे को।
और
सब यह जानते भी हैं
यह समय एक धुप्प अँधेरे का समय है
जहाँ रौशनी का गला रेत दिया गया है
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
धन्यवाद स्वेता जी
हटाएंआदरणीय धीरेंद्र जी ,
जवाब देंहटाएंकृपया स्पेम की प्रतिक्रिया चेक करिये 'पाँच लिंकों' में आपकी रचना प्रकाशित की गयी है उसका आमंत्रण है।
सादर।
वाह!बहुत खूबसूरत सृजन।
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहहह
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