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बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी;
जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी।

गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी,
फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी।

कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी,
पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी।

कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां,
फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी ।

कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को,
दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।

टिप्पणियाँ

  1. वाह क्या खूब,लाज़़वाब ग़ज़ल।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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