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कीमत

तुम आ गए हो तो रौनक आ गई है गरीबखाने  में वगरना कोई कब्रिस्तां में जश्न मनाता है क्या। एक इश्क ही तो है जिसमें लोग लुट जाते हैं, यूं ही मुफ्त में कोई वजूद अपना मिटाता है क्या। जो तुम कुछ दे देते हो एक दुआ के खातिर, वह फकीर कभी अपना एहसान जताता है क्या। मुनासिब है कि पी जाएं मयखाने को एक प्याले में डालकर, कब कौन कीमत कोई साकी की लगाता है क्या। तुम आ गए हो तो रौनक आ गई है गरीबखाने  में वगरना कोई कब्रिस्तां में जश्न मनाता है क्या।