संवेदनाएं ,
हो चुकी हैं
चेतना शून्य !
अब ये इंसान
रह गया बनकर
एक हांड-मांस का
पुतला भर ,
और इससे अब
उम्मीदें करना
व्यर्थ है !
यह मात्र
जिन्दा तो है
पर इसकी कुछ करने
की क्षमता
लुप्त हो गयी है !
सांसें लेना भर
जिन्दा होने के
चिह्न नहीं हैं,
और भी कुछ जरूरी है
इंसान होने के लिए,
जब तक तुम्हारी
संवेदनाएं जीवित नहीं है ,
तुम जिन्दा कहाँ हो!
?
संवेदनाओं की हानि का अच्छा वर्णन.......।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच...संवेदनाहीन मनुष्य इंसान कहाँ होता है...बहुत सार्थक रचना
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जवाब देंहटाएंयथार्थ का चित्रण करती सुन्दर रचना |
आशा
बिल्कुल सच कहा आपने ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसंवेदना ना होना मृत वर्ग के समान है। उम्दा कविता
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंइंसान होने के लिए,
जवाब देंहटाएंजब तक तुम्हारी
संवेदनाएं जीवित नहीं है,,,,भावपूर्ण लाजबाब पंक्तिया,,,,
तुम जिन्दा कहाँ हो!recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
सुन्दर प्रस्तुति ,SAMY HO TO BENAKAN PR VISIT KAREN
जवाब देंहटाएंजी अवश्य मधु जी !
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसंवेदनाएँ कहीं शून्य हो गयीं हैं, कहीं भीतर ही भीतर घुटी जा रही हैं....~हालात गंभीर हैं!:(
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 10 -01 -2013 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं....
सड़कों पर आन्दोलन सही पर देहरी के भीतर भी झांकें.... आज की हलचल में.... संगीता स्वरूप. .
सब अपने अपने स्वार्थ में लिप्त हैं .... समवेदनाएं सीमित दायरे में रह गयी हैं ।
जवाब देंहटाएंसिर्फ अपने लिए जीता है इंसान और फिर संवेदनाएं कहाँ रह जाती है? जब अपने घर से लेकर बाहर तक वह सम्वेदना शून्य है तो फिर वह इंसान कहाँ बचा
जवाब देंहटाएं--
रेखा श्रीवास्तव
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सार्थक प्रस्तुति
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