जन्म तो लिया था,
मनुज के रूप में
पर भूख ने विवश कर दिया,
बनने को पशु से बदत्तर !
आखिर जीवन को
जीवित रखने के लिए
कुछ तो करना ही पड़ेगा!
शायद यह
मानव और पशु का
वर्गीकरण ही
एक भ्रम ही है;
अन्यथा
पशु और मानव में
क्या अंतर है ?
या कुछ पशुओं ने
स्वयं को पृथक करने हेतु
सिद्धांत बनाएं होंगे
पशु से सामाजिक प्राणी बनने के लिए;
जो आज उनकी नस्लों के लिए ही
बाधक बन गये हैं !
भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
तीर सही निसाने पर जाके लगा है।
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जवाब देंहटाएंInvitation - inglês
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आज तो कोई अंतर नहीं दिखता.....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना...
अनु
सच है मानवीयता के मायने भूल चले हैं हम
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 31-01-2013 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं....
आज की हलचल में.....मासूमियत के माप दंड / दामिनी नहीं मिलेगा तुम्हें न्याय ...
.. ....संगीता स्वरूप
. .
सच ही है ... शायद ....
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
वास्तव में जो पशु स्वयं को मानव समझ बैठे हैं या जताना चाहते हैं उनकी पहचान होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि समाज के लिए वे ही सबसे बड़ा खतरा हैं ! प्रभावशाली प्रस्तुति !
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