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पशु से सामाजिक प्राणी तक !


जन्म तो लिया था,
मनुज के रूप में 
पर भूख  ने विवश कर दिया,
बनने को  पशु से बदत्तर !

आखिर जीवन को
जीवित रखने के लिए 
कुछ तो करना ही पड़ेगा!

शायद यह 
मानव और पशु का 
वर्गीकरण ही 
एक भ्रम ही है;
अन्यथा 
पशु और मानव में 
क्या अंतर है ?


या कुछ पशुओं ने 
स्वयं को पृथक करने  हेतु 
सिद्धांत बनाएं होंगे 
पशु से सामाजिक प्राणी बनने के लिए; 
जो आज उनकी नस्लों के लिए ही 
बाधक बन गये हैं !

टिप्पणियाँ



  1. Invitation - inglês
    I'm Brazilian.
    Spent reading here, and visit his blog.
    I also have one, only much simpler.
    I'm inviting you to visit me, and if possible follow together for them and with them. I always liked to write, expose and share my ideas with people, regardless of class Social, Religious Creed, the Sexual Orientation, or, of Ethnicity.
    To me, what will interest is our exchange of ideas, and, thoughts.
    I'm there in my space Simpleton, waiting for you.
    And I'm already following your blog.
    Strength, Peace, Friendship and Happiness
    For you, a hug from Brazil.
    www.josemariacosta.com

    जवाब देंहटाएं
  2. आज तो कोई अंतर नहीं दिखता.....

    सार्थक रचना...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. वास्तव में जो पशु स्वयं को मानव समझ बैठे हैं या जताना चाहते हैं उनकी पहचान होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि समाज के लिए वे ही सबसे बड़ा खतरा हैं ! प्रभावशाली प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं

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