सुबह की 
शबनमी घास 
या पक्षियों का कलरव,
अधखिली कलियों के 
खिलने की आतुरता 
सब लीन हो जाते हैं 
एक और दिन गुजरने के 
प्रयास में !
और फिर
सूरज ओढ़ लेता है 
वही चिर पुरानी 
तमिषा की चादर,
शाम होने तक
शाम होने तक
कहीं रात उसके 
गुनाहों का 
हिसाब न मांगने लगे !
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंडॉ अजय
drakyadav.blogspot.in
bahut hi sundar rachna............badhai
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : समझ में आया बापू .
और जीवन यूँ ही निरंतर चलता रहता है. सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंसमाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14
bahut hi behtarin prastuti...
जवाब देंहटाएं:-)
जो दिन के उजाले में गुनाह करता है उसे रात कहां ढूंढ पाएगी ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गहरी सोच से उपजी रचना ...
sir jo gunaho karta hai,us k liye kya din kya raat.............par bahut umda soch.......badhai dheerendra ji.......
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना । सुन्दर शब्द संयोजन । बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
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