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एक और दिन

सुबह की 
शबनमी घास 
या पक्षियों का कलरव,
अधखिली कलियों के 
खिलने की आतुरता 
सब लीन हो जाते हैं 
एक और दिन गुजरने के 
प्रयास में !

और फिर 
सूरज ओढ़ लेता है 
वही चिर पुरानी 
तमिषा की चादर,
शाम होने तक 
कहीं रात उसके 
गुनाहों का 
हिसाब न मांगने लगे !

टिप्पणियाँ

  1. खूबसूरत भावाभिव्यक्ति |
    डॉ अजय
    drakyadav.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  2. और जीवन यूँ ही निरंतर चलता रहता है. सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  3. जो दिन के उजाले में गुनाह करता है उसे रात कहां ढूंढ पाएगी ...
    लाजवाब गहरी सोच से उपजी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  4. sir jo gunaho karta hai,us k liye kya din kya raat.............par bahut umda soch.......badhai dheerendra ji.......

    जवाब देंहटाएं
  5. मार्मिक रचना । सुन्दर शब्द संयोजन । बधाई ।

    जवाब देंहटाएं

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