प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
मेरी क्षति के किनारे,
मेरे जीवन के शेयर;
तन मन मेरे, तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
मन के नूतन अभिनन्दन !
सुंदर जीवन के नवनंदन,
प्राण धन मेरे, तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
जीवन के नूतन अभिराम,
मन मंदिर के प्रिय घनश्याम,
प्रेम बंधन मेरे तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
ढूढ़ते जिसे ये सूने नयन,
पुकारे जिसे ये प्यासा मन;
समर्पण मेरे, तुम कहाँ हो?
प्रियवर तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
घनश्याम ने कहा...
जवाब देंहटाएं"तुम्हारे अंतर्मन में!"
अन्तर्गगन की यह अभिव्यक्ति खींच लाएगी प्रभु को!
लिखते रहें...
शुभकामनाएं!