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आशा और कल्पना

दिनकर की विशाल किरणें,
क्यों कर मलिन हो रहीं हैं?
सृजन की राहें अब क्यों,           
विह्वर और कठिन हो रही हैं?

अविरल जीवन की श्रांत सांसें,
क्या क्षुण क्षणों में व्यर्थ हो जायेंगीं?
सृजन की ये नव आशाएं ,
क्या प्रत्यक्ष यथार्थ हो पाएंगीं//

कल्पनाओं की अल्पनायें अब,
क्यों कर धूमिल हो रहीं हैं..... 
दिनकर की विशाल किरणें,
क्यों कर मलिन हो रहीं हैं?
सृजन की राहें अब क्यों,
विह्वर और कठिन हो रही हैं?


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मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!

बेख्याली

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