कितनी सुर्ख
हो रही धूप,
शीतल हो चुका;
अब सूरज
सारी उसकी गर्मी
समा गयी ,
इस पुरानी
सर्द धूप में!
जब घुटन ने
घोंट दिया दम
का ही गला,
तो घोंटने को
दम घुटन
कहाँ जाय !
लाल आग को
पीकर चल पड़ी ,
जाड़े की रातें;
लीलने उस जाड़े को
जिसके आते ही
जाग पड़तीं थीं,
वो सर्द रातें!!
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