अब मुझे आईने से डर लगने लगा है , जबसे तेरा अक्स मुझमें दिखने लगा है ! अक्सर मेरे ख़याल मुझसे ये सवाल करते हैं , इधर तू कुछ बदला-बदला दिखने लगा है ! इक मुद्दत हुयी खुद को भूले हुए मुझे, अब तो जर्रे-जर्रे में तू ही तू दिखने लगा है ! गम-ए- दर्द का इल्म ही न रहा दिल को , जबसे तेरे अश्कों में आबे- हयात दिखने लगा है ! कहाँ है खुदा और किसे करूं सजदा यहाँ, अबतो मेरे अजीज में ही खुदा दिखने लगा है ! अब मुझे आईने से डर लगने लगा है , जबसे तेरा अस्क मुझमें दिखने लगा है !
आपके विचारों का प्रतिबिम्ब !