खिला हुआ पुष्प
और बहता हुआ पवन,
किसी से नहीं करते
असमानता का आचरण !
फिर तुम क्यों अपनी
नस्ल को बदनाम
करने पे तुले हो !
जबकि स्थाई न तो
पवन की शीतलता है
और न ही पुष्प की
मनमोहक सुगंध
और तुम्हारा जीवन !
और बहता हुआ पवन,
किसी से नहीं करते
असमानता का आचरण !
फिर तुम क्यों अपनी
नस्ल को बदनाम
करने पे तुले हो !
जबकि स्थाई न तो
पवन की शीतलता है
और न ही पुष्प की
मनमोहक सुगंध
और तुम्हारा जीवन !
और हाँ तुम्हे
गुमान किस बात का ?
तुम से तो शीतलता
और सुगंध दोनों की
उम्मीद भी नहीं !
तुम्हें बनाकर उसे भी अब
तुम्हें बनाकर उसे भी अब
अफ़सोस हो रहा होगा
काश तुम्हारे स्थान पर
एक वृक्ष या कोई
चट्टान रची होती
जो कुछ तो देती इस
सर्जना को !
...भाई जी , सुन्दर और आँखें खोलने वाली रचना !
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