जिन्दगी इतनी
उदास क्यों है?
सब कुछ तो है
रोती कपड़ा
और मकान !
फिर खटकती है
कमी किसकी अब
क्या नहीं है
तुम्हारे पास !
शायद वो स्पन्दित
करुनामय हृदय
नहीं रहा अब ,
तभी तो एक
मशीन के तुल्य
चला जा रहा है
तुम्हारा जीवन !
समेत ली पूरी
दुनिया की दौलत,
भर लिए खजाने
और बन गये
यशस्वी और
माननीय अधिपति !
लेकिन नहीं बन पाए
अपने पिता के
सच्चे सपूत और
अधूरी रह गईं
उनकी आशाएं
जिनके लिए रचा था
उसने तुम्हें और
दिया था अपनी
सबसे सुंदर सर्जना को
संवारने का पुन्य कार्यभार !
शायद इसी लिए
उदास है तुम्हारी जिन्दगी
और तुम्हारा ये
अतृप्त मन !!
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