सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रेत पर बिखरा प्रेम!


मुझे मालूम है
नहीं हो सकती तुम मेरी !

उम्र भर यादों के सहारे,
जीने का असफल प्रयास 
करोगी तुम!


लेकिन घर, समाज और 
झूठे सिद्धांतों का 
प्रतिरोध करने की 
हजार कोशिशों बाद भी 
हिम्मत न जुटा पाओगी !

और मै
तुम्हारा इन्तजार 
करते-करते,
आखिरी सांस को 
पीछे छोड़ने में
लगा हूँ !

यह प्रेम 
कितना क्रूर है
जो  दो जिंदगियों को 
किश्तों में जीने को 
मजबूर कर देता है!

या शायद:
मैं तुम्हारे मिथ्या 
प्रेम को यथार्थ 
मान कर सब कुछ
समर्पित करता चला गया!
जिसे तुमने एक 
रेत के घरोंदे सा 
मानकर स्मृतियों से
मिटा दिया !

   ?
-- 

टिप्पणियाँ

  1. या शायद:
    मैं तुम्हारे मिथ्या
    प्रेम को यथार्थ
    मान कर सब कुछ
    समर्पित करता चला गया!
    जिसे तुमने एक
    रेत के घरोंदे सा
    मानकर स्मृतियों से
    मिटा दिया !
    yah ek soch ho sakta hai
    New post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !

    जवाब देंहटाएं
  2. shabdo ka sundar Sanyojan...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_26.html

    जवाब देंहटाएं
  3. रेत के घरोंदे सा...........इसमें रेत के की जगह रेत का करें।
    मानकर स्मृतियों से
    मिटा दिया !

    पीड़ित प्रेमाभिव्‍यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर रचना,भावों की उम्दा अभिव्यक्ति,,,

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    recent post: गुलामी का असर,,,

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ क...

मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।