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औरतें

 कब 
उठ जाती है
सुबह ,
पता ही 
नहीं चलता!
बच्चों 
का टिफिन 
और बाबूजी की
दवायें
और पति के
कुनमुनाने तक
सुबह की चाय,
कैसे तैयार कर 
लेती है यह सब।


इतना सब 
करने पर भी,
क्या कुछ बचा
रहता भी है
उसके खुद के लिए?
या केवल 
जली भुनी बातें
बिल्कुल उसके हिस्से
की रोटियों जैसी,
आती है हिस्से में ।

क्यों 
भेज देते हैं पिता
अपनी बेटी को 
दूसरे घर में
यह कह कर कि
अब तुम्हारा है वह घर
जो कभी शायद
ही हो पाता है उसका
पहले जैसा घर।

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