क्या
तुमने कभी
देखा है,
दो पैरों वाले
बहशी जानवर को,
( जानवर शब्द के प्रयोग से जानवर जाति का अपमान है )
यदि नहीं,
तो अपनी रुह से
पूछो,
अभी तक
जिन्दा क्यों है।
क्या दरिंदगी का सबसे
वीभत्स रूप
ईश्वर ने तुम्हारी रूह को दिया है।
सृजेयता को भी
ग्लानि होती होगी,
देखता होगा
जब तुम्हारे कुकृत्यों कों
तुमने कभी
देखा है,
दो पैरों वाले
बहशी जानवर को,
( जानवर शब्द के प्रयोग से जानवर जाति का अपमान है )
यदि नहीं,
तो अपनी रुह से
पूछो,
अभी तक
जिन्दा क्यों है।
क्या दरिंदगी का सबसे
वीभत्स रूप
ईश्वर ने तुम्हारी रूह को दिया है।
सृजेयता को भी
ग्लानि होती होगी,
देखता होगा
जब तुम्हारे कुकृत्यों कों
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-07-2014) को "संस्कृत का विरोध संस्कृत के देश में" (चर्चा मंच-1679) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वहशी सोंच वाले क्या सच में सोंचने और समझने की क्षमता रखते हैं...
जवाब देंहटाएंकलयुग जो है इसलिए जिन्दा है सबसे ज्यादा दैन्दगी वाला जानवर ... इंसानी रूप में ...
जवाब देंहटाएंसंस्कृति और संस्कार की नींव बचपन से पड़ती है...अधकचरा ज्ञान जो इंटरनेट के माध्यम से मिल रहा है...वो विकृतियों को और बढ़ा रहा है...सजा का प्रावधान ढीला और लचर है...वर्ना दरिंदों की रूहें भी काँपें...दरिंदगी से पहले...
जवाब देंहटाएंयक़ीनन .... मानवीय व्यवहार तो नहीं है इन अमानुषों में
जवाब देंहटाएंभारत शायद अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा हैं। इतना अहित तो अंग्रेजो के समय्भी नही हुआ होगा....
जवाब देंहटाएंBahut sahi likha.. Saarthak abhivyakti!!
जवाब देंहटाएंजो दूसरे में ईशत्व की प्रतिमूर्ति न देखे वह जीता जागता राक्षस है
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