रात के साये में
फुटपाथों पर पसरा
आधी रात का
आधा शहर !
ठेले, खुमचे वाले,
रिक्शे, चाय वाले,
काम की तलाश में
आये बेरोजगार !
मजबूर मजदूर
और उनका परिवार
सब को मखमली फुटपाथ,
सुला लेता है
अपनी गोद में
एक माँ के जैसा।
और सुबह होते ही
दौड़ पड़ेगा फिर से
पूरा शहर ;
पर कई पिछली रातों सा
कल रात भी
दिख जाएगा
इन्हीं फुटपाथों पर
आधी रात के बाद
आधा शहर !
फुटपाथों पर पसरा
आधी रात का
आधा शहर !
ठेले, खुमचे वाले,
रिक्शे, चाय वाले,
काम की तलाश में
आये बेरोजगार !
मजबूर मजदूर
और उनका परिवार
सब को मखमली फुटपाथ,
सुला लेता है
अपनी गोद में
एक माँ के जैसा।
और सुबह होते ही
दौड़ पड़ेगा फिर से
पूरा शहर ;
पर कई पिछली रातों सा
कल रात भी
दिख जाएगा
इन्हीं फुटपाथों पर
आधी रात के बाद
आधा शहर !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (22-05-2014) को अच्छे दिन (चर्चा-1620) पर भी है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर ।
हटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंफुटपाथ होता है पूरा शहर ... सब कुछ तो होता है इस्सी फुटपाथ पर ...
जवाब देंहटाएंगहरी छाप छोड़ती रचना ...
मन को छूती कविता आपकी ,सुन्दर
जवाब देंहटाएंकितने लोगों को आसरा देता है ये फुटपाथ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कथ्य...
जवाब देंहटाएंहकीकत बयान की है आपने, मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंपर कई पिछली रातों सा
जवाब देंहटाएंकल रात भी
दिख जाएगा
इन्हीं फुटपाथों पर
आधी रात के बाद
आधा शहर !
आधे शहर की यही कहानी है ! बहुत सुन्दर लिखा है आपने श्री वाणभट्ट जी