चलते-चलते यदि
रुक जाये पथिक
तो लक्ष्य हो जाता
क्यों और कठिन ?
पर गति ही तो है
जो चेतन को देती
नया अस्तित्त्व ,
और बनाती जीवंत !
लक्ष्य पूर्व ठहराव
करता व्योमोहित
और अंतस को
कर देता भ्रमित !
बाधाएं और विराम ,
नहीं है लक्ष्य के
कोई तुष्टि हेतु विकल्प !
और परिणाम !
चेतना ही चेतन को
देगी इसका पूर्ण
और शाश्वत लक्ष्य
व अंतिम विराम !
हे अत्न होकर
व्यथित और श्रांत
न कर जीवन
व्यर्थ और क्लांत !
होकर कर्मच्युत
व्यर्थ न कर
लक्ष्य निर्वाण !
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