गाँव के अंतिम छोर पर
था एक टूटा हुआ
माटी का घर !
जिसमे रहती थीं
एक बूढी माँ !
आज उन्होंने छोड़ दिया
वह घर और संसार !
जिसके लिए उन्होंने
किये थे कुर्बान
अपने चार जवान बेटे !
सुना है वो बेटे
शहीद हुए थे देश की
आन और सम्मान
को बचाने में !
पर माँ हो गयी थी
बेबस और लाचार;
यूँ ही झूठा एक तमगा
मिल गया था उसे
जीने के लिए !
जो नहीं मिटा सकता था
उसके पेट व जरूरतों की
भूख और मांगो को !
घिसटते-घिसटते
बिता दिए थे उन्होंने
पूरे चालीस साल !
कोई नहीं पूछने आया
उस माँ की विवशता का
कारण और दिखाने
समाधान का रास्ता !
क्यों किसी के सामने
फैलाती अपने दीन हाँथ
आखिर वह थीं तो
शहीदों की माँ !
( शत -शत नमन ऐसी ही अनगिनत माँओं के त्याग को और उनकी अपार सहनशक्ति को !)
था एक टूटा हुआ
माटी का घर !
जिसमे रहती थीं
एक बूढी माँ !
आज उन्होंने छोड़ दिया
वह घर और संसार !
जिसके लिए उन्होंने
किये थे कुर्बान
अपने चार जवान बेटे !
सुना है वो बेटे
शहीद हुए थे देश की
आन और सम्मान
को बचाने में !
पर माँ हो गयी थी
बेबस और लाचार;
यूँ ही झूठा एक तमगा
मिल गया था उसे
जीने के लिए !
जो नहीं मिटा सकता था
उसके पेट व जरूरतों की
भूख और मांगो को !
घिसटते-घिसटते
बिता दिए थे उन्होंने
पूरे चालीस साल !
कोई नहीं पूछने आया
उस माँ की विवशता का
कारण और दिखाने
समाधान का रास्ता !
क्यों किसी के सामने
फैलाती अपने दीन हाँथ
आखिर वह थीं तो
शहीदों की माँ !
( शत -शत नमन ऐसी ही अनगिनत माँओं के त्याग को और उनकी अपार सहनशक्ति को !)
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