क्षुधाकुल बालक की
कंठ अवरुद्द सिसकियाँ,
रोटी की जद्दोजहद में
टूटे हुए बदन का दर्द !
बंजर हुयी धरती की
अन्न्दायी वह कोख !
क्या यही है
मानव की महानतम
सभ्यता का चरम विकास !!
सूख गये बादल
सूरज शीतल हो गया ,
चाँद की तपिश
अब चुभने लगी बदन में !
नदी के चिह्न हैं
मात्र अवशेष ,
मौन हो चली जलधारा !!
हवा बंद है
एक सिलेंडर में
सांसें अब बिकने लगीं !
खरीदने को है
बेचैन अतिगव मानव ;
शायद भूल गया
वह प्रारब्ध के नियमों को !!
विकास की भूख ने
निगल लिया है
साधनों को; अब
प्रायश्चित ही शेष है
मिटाने को भूख,
एवं प्रतीक्षा
एक और सभ्यता के
पतन की !!
कंठ अवरुद्द सिसकियाँ,
रोटी की जद्दोजहद में
टूटे हुए बदन का दर्द !
बंजर हुयी धरती की
अन्न्दायी वह कोख !
क्या यही है
मानव की महानतम
सभ्यता का चरम विकास !!
सूख गये बादल
सूरज शीतल हो गया ,
चाँद की तपिश
अब चुभने लगी बदन में !
नदी के चिह्न हैं
मात्र अवशेष ,
मौन हो चली जलधारा !!
हवा बंद है
एक सिलेंडर में
सांसें अब बिकने लगीं !
खरीदने को है
बेचैन अतिगव मानव ;
शायद भूल गया
वह प्रारब्ध के नियमों को !!
विकास की भूख ने
निगल लिया है
साधनों को; अब
प्रायश्चित ही शेष है
मिटाने को भूख,
एवं प्रतीक्षा
एक और सभ्यता के
पतन की !!
nice poetry
जवाब देंहटाएंकल 11/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!