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जीवन त्राण

नीरस प्राण
लिए पागल 
मैं कहता हूँ;
ठहर तो सही 
पल दो पल के लिए !

कितना चला 
चलकर भी 
न थका अब ,
है व्याकुल तू ,
किस नभ - थल के लिए!

उलझ रहा 
राग-द्वेष के 
मिथ्या रस में ;
भ्रमित भटकता 
तृष्णा में जल के लिए !

अश्रांत जीवन 
व्योमोहित मन ,
लिए व्यर्थ व्यथा ;
व्यथित है तू 
अनिश्चित कल के लिए !

खोकर प्राप्य
खोजता अज्ञेय ;
सोंच तनिक जो
क्यों चिंतित है 
अदृश्य फल के लिए !

नीरस प्राण
लिए पागल
मैं कहता हूँ;
ठहर तो सही
पल दो पल के लिए !




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स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!

मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।

पानी वाला घर :

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