मेरी पीड़ा;
मुझको ही
पी जाने दो ,
मेरे जीवन की
मेरी ये घड़ियाँ
मुझको ही
जी जाने दो;
उन स्वप्निल
आशाओं के
बिखरन की पीड़ा,
तुम क्या जानोगे?
मेरे उस सच के
सच को
तुम क्या मानोगे ?
मान भी जाओ,
पर
मेरा ही रह जाने दो!
मेरी पीड़ा;
मुझको ही
पी जाने दो !
मुझको ही
पी जाने दो ,
मेरे जीवन की
मेरी ये घड़ियाँ
मुझको ही
जी जाने दो;
उन स्वप्निल
आशाओं के
बिखरन की पीड़ा,
तुम क्या जानोगे?
मेरे उस सच के
सच को
तुम क्या मानोगे ?
मान भी जाओ,
पर
मेरा ही रह जाने दो!
मेरी पीड़ा;
मुझको ही
पी जाने दो !
बहुत सुन्दर है .धन्यवाद
जवाब देंहटाएंhttp://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बस अब पीड़ा ही पीने का समय है।
जवाब देंहटाएंकुछ सिखाती समझाती कविता...... बहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मेरे उस सच के
जवाब देंहटाएंसच को
तुम क्या मानोगे ?
मेरी पीड़ा;
मुझको ही
पी जाने दो !
बहुत उम्दा,सुंदर भावपूर्ण पंक्तिया ,,,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
सच ...सबकी अपनी पीडाएं हैं अपने दुःख हैं.....
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल रचना..
अनु
sunder..
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