बाज़ार वाद हावी है,
रोटियों के लिए
बिकना पड़ता है
माँ को भी।
शेम्पियन सस्ती है,
उनके लिए,
जो दो रोटियों की
कीमत में।
खरीदते हैं
रातें एक अबला की।
बनाते रहो यूँ ही बाज़ार,
तभी तो पनपता रहेगा
बाज़ार वाद ।
रोटियों के लिए
बिकना पड़ता है
माँ को भी।
शेम्पियन सस्ती है,
उनके लिए,
जो दो रोटियों की
कीमत में।
खरीदते हैं
रातें एक अबला की।
बनाते रहो यूँ ही बाज़ार,
तभी तो पनपता रहेगा
बाज़ार वाद ।
आज की भूख को भुना रहा है ये बाजारवाद ...
जवाब देंहटाएंअफ़सोस होता है जब संस्कृति और आचरण भी बाज़ारू हो जाते हैं...
जवाब देंहटाएंbahot sunder .......... i like !!
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