मकाँ तो बहुत बना लिए ,
एक घर को तरसते हैं आज भी।
आँसू बहाना तो एक रस्म भर है,
नेह के नीर को तरसते हैं आज भी।
रिश्तों में अब वो कशिश कहाँ,
एक " रिश्ते " को तरसते हैं आज भी।
कहने को सारी जमीं अपनी है,
खुले आसमां को तरसते हैं आज भी।
कपड़े बहुत हैं तन ढकने के लिए,
बस आँचल को तरसते हैं आज भी।
एक घर को तरसते हैं आज भी।
आँसू बहाना तो एक रस्म भर है,
नेह के नीर को तरसते हैं आज भी।
रिश्तों में अब वो कशिश कहाँ,
एक " रिश्ते " को तरसते हैं आज भी।
कहने को सारी जमीं अपनी है,
खुले आसमां को तरसते हैं आज भी।
कपड़े बहुत हैं तन ढकने के लिए,
बस आँचल को तरसते हैं आज भी।
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