सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गुलामी की राह पर बढ़ते कदम


हम देशवासी सरकारों से उम्मीद करते हैं कि हमें स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और सुरक्षा मिलेगी ।
पर मिलता क्या है?
रोटियों के लिये स्त्रियों को लुटना पड़ता है,
सुरक्षा करने वाले रक्षक मौका पाते ही नोच डालते हैं। रईस लोग अपनी शाम रंगीन करने के लिये कितनी ही पुत्रियों की जिन्दगियाँ नरक बना देते हैं ।
हर सरकार नई नई कागजी योजनायें बनाकर हमारे ही पैसों को डकार जाती हैं।
हम दिन पर दिन कर्ज में डूब रहे हैं, सत्ता और विपक्ष मिलकर हमें लूटते रहते हैं , थोड़े व्यक्तिगत लाभ के लिये हम इन्हीं धूर्तों को सत्ता सौंप देते हैं और ये लोग हमें धर्म के नाम पर गुमराह करके अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं।
सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि हम जानते हुये बार बार यही गलती करते हैं।
हम गुलामी की ओर अग्रसर हैं और हमारी सन्तानें दासता का जीवन जीने के लिये मजबूर हो रहीं हैं ।
आइए इस गुलामी की तरफ कदम से कदम मिलाकर चलें, कहीं भविष्य का गौरवशाली इतिहास कलंकित न हो जाय कि हमारी पीढ़ी ने देश गुलाम बनाने में योगदान नहीं किया, या शायद इतिहास ही न लिखने लायक रहे यह देश ।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (03-09-2015) को "निठल्ला फेरे माला" (चर्चा अंक-2087) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।