हम हुए आज़ाद
कि आज रोटी पकेगी,
हुयी महंगी दाल
कि तरकारी रंधेगी........
हम हुए आज़ाद..........
कि आज रोटी पकेगी,
हुयी महंगी दाल
कि तरकारी रंधेगी........
हम हुए आज़ाद..........
डंडे खाये -लाठी खायी
और कुछ ने तो अपनी
गरदन भी कटवायी,
कि जशन पै आज
मुला दारू बटेगी......
हम हुए आजाद........।
और कुछ ने तो अपनी
गरदन भी कटवायी,
कि जशन पै आज
मुला दारू बटेगी......
हम हुए आजाद........।
सरकार बड़ी सरकारी है,
जनता की तो लाचारी है।
इस्कूल सबै गिर गए हैं
मुला किताबें खूब बिकेंगी.....
हम हुए आजाद.......।
जनता की तो लाचारी है।
इस्कूल सबै गिर गए हैं
मुला किताबें खूब बिकेंगी.....
हम हुए आजाद.......।
मरीज़ मरि रहे अस्पतालों में,
डाकडर मस्त हैं भेड़चालों में
मेडिसिन सब बिलैक् भईं,
मुला दवाई खूब बनेंगी........
हम हुए आजाद.......,
कि आज रोटी पकेगी।
डाकडर मस्त हैं भेड़चालों में
मेडिसिन सब बिलैक् भईं,
मुला दवाई खूब बनेंगी........
हम हुए आजाद.......,
कि आज रोटी पकेगी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (17-08-2016) को "क्या सच में गाँव बदल रहे हैं?" (चर्चा अंक-2437) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
साभार धन्यवाद सर।
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