अजब सा रिश्ता है अब मेरा तन्हाइयों से ,
जब भी टूटता हूँ , मुझको थाम लेती हैं।
माना के मुकद्दर को यही मंजूर था, मगर ,
दुनिया तो एक तुझे ही इल्जाम देती है।
गुजर तो रही है तेरे बगैर ये जिंदगी ,
हर एक साँस अब मेरी जान लेती है।
कत्ल की साजिश में यूँ तो और भी लोग थे ,
अजीजों में खल्क बस तेरा नाम लेती है
कौन पूछता है उदासी का सबब मुझसे
जिंदगी कदम-कदम पे इम्तिहान लेती है।
कायनात नहीं बख्शती है किसी को भी,
वक्त आने पर सभी से इंतकाम लेती है
शानदार गज़ल सर।
जवाब देंहटाएंहर शेर बेहतरीन है।
सादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
🙏🙏
हटाएंकायनात नहीं बख्शती है किसी को भी,
जवाब देंहटाएंवक्त आने पर सभी से इंतकाम लेती है
बहुत सटीक एवं सुंदर
लाजवाब गजल।
वाह!!!
साभार धन्यवाद 🙏🙏
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