सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

औरतें

 कब 
उठ जाती है
सुबह ,
पता ही 
नहीं चलता!
बच्चों 
का टिफिन 
और बाबूजी की
दवायें
और पति के
कुनमुनाने तक
सुबह की चाय,
कैसे तैयार कर 
लेती है यह सब।


इतना सब 
करने पर भी,
क्या कुछ बचा
रहता भी है
उसके खुद के लिए?
या केवल 
जली भुनी बातें
बिल्कुल उसके हिस्से
की रोटियों जैसी,
आती है हिस्से में ।

क्यों 
भेज देते हैं पिता
अपनी बेटी को 
दूसरे घर में
यह कह कर कि
अब तुम्हारा है वह घर
जो कभी शायद
ही हो पाता है उसका
पहले जैसा घर।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!