शायद
तुम भूल चुके हो,
अपना प्रथम प्रणय निवेदन!
मेरी
पायल की झनक से,
तीव्र हो जाता था स्पंदन !
अब मेरा
कुछ भी कहना
लगता है एक कांटे की चुभन !
जानती हूँ,
नहीं तृप्त करता
तुम्हारी सोंच, मेरा यौवन !
अनभिग्य
भी नहीं हूँ मैं,
चिर परिचित है यह मनु-मन !
बस छोभ
इतना भर है . प्रिये !
क्यों व्यर्थ होता स्त्री समर्पण !!
wah....nishabd kar diya apne
जवाब देंहटाएं