सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रेम

तुम्हें मुझसे ही
क्यों प्रेम होना था;


किस्मत का रूठ जाना
अच्छा था,
इन सांसों का टूट जाना
अच्छा था।


भला कोई बिना प्रिय के भी
जी पाता है;
फिर यह प्रेम यूँ ही
क्यों हो जाता है।


मुझे मेरी पीड़ा का तो
मलाल नहीं,
पर तुम्हारी वेदना
मुझे व्यथित कर जाती है।


प्रिये ! मैं तुमसे कहूँ,
भुला दो मुझे;
पर क्या मुमकिन होगा,
तुम्हें भूल जाना मेरे लिए।

टिप्पणियाँ

  1. मुश्किल है दोनों बातों का होना ... दोनों बस में कहाँ होती हीन जब प्रेम आ जाए बीच में तो ...

    जवाब देंहटाएं
  2. Prem ka shuruaat jitna sakoondeh hai utna hi mushkil hai uske ant ka har pal.. Uske baad bhi nhi bhoola ja sakta behad bhaawpurn!!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

अमरबेल

ये जो कैक्टस पर दिख रही है अमरबेल , जानते हो यह भी परजीवी है ठीक राजतन्त्र की तरह।   लेकिन लोकतंत्र में कितने दिन पनप सकेगी ये अमरबेल , खत्म होगा इसका भी अमरत्व आखिर एक दिन

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह