सिस्टम में नहीं फिट बैठता, क्या करूं,
थोड़ा सा मैं ईमानदार जो हूं।
रो पड़ता हूं किसानों की खुदकुशी पर ,
थोड़ा सा मैं जमीनदार जो हूं।
नहीं बेचा जाता मुझसे मेरा ज़मीर,
थोड़ा सा मैं ज़मीर दार जो हूं।
नहीं देखी जाती मुझसे अब ये लाचारी,
थोड़ा सा मैं तामीर दार जो हूं।
कैसे न करूं खरीद-फरोख्त ग़मे-बाजार में
थोड़ा सा मैं खरीद दार जो हूं।
थोड़ा सा मैं ईमानदार जो हूं।
रो पड़ता हूं किसानों की खुदकुशी पर ,
थोड़ा सा मैं जमीनदार जो हूं।
नहीं बेचा जाता मुझसे मेरा ज़मीर,
थोड़ा सा मैं ज़मीर दार जो हूं।
नहीं देखी जाती मुझसे अब ये लाचारी,
थोड़ा सा मैं तामीर दार जो हूं।
कैसे न करूं खरीद-फरोख्त ग़मे-बाजार में
थोड़ा सा मैं खरीद दार जो हूं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-10-2018) को "जय जवान-जय किसान" (चर्चा अंक-3112) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Ration Card
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।