सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

यूं ना जिंदगी को जार जार करिए

यूं ना जिंदगी को जार जार करिए,   
थोड़ा सा खुद से भी प्यार करिए।   

ये इश्क का मुवामला है बर्खुरदार,। 
जरा सा जीत को भी हार करिए। 

हो जरूरत जंग में जो शहादत की,
कुरबान खुद को बार-बार करिए।

ठीक नहीं मजहबी सियासत करना,
इरादों का अपने इश्तिहार करिए ।

जुल्म की जंग हो गई है पेचीदा,     
कलम और थोड़ा धारदार करिए।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-10-2018) को "पावन करवाचौथ" (चर्चा अंक-3137) (चर्चा अंक-3123) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. Ration Card
    आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

अमरबेल

ये जो कैक्टस पर दिख रही है अमरबेल , जानते हो यह भी परजीवी है ठीक राजतन्त्र की तरह।   लेकिन लोकतंत्र में कितने दिन पनप सकेगी ये अमरबेल , खत्म होगा इसका भी अमरत्व आखिर एक दिन

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह