यूं ना जिंदगी को जार जार करिए,
थोड़ा सा खुद से भी प्यार करिए।
ये इश्क का मुवामला है बर्खुरदार,।
जरा सा जीत को भी हार करिए।
हो जरूरत जंग में जो शहादत की,
कुरबान खुद को बार-बार करिए।
ठीक नहीं मजहबी सियासत करना,
इरादों का अपने इश्तिहार करिए ।
जुल्म की जंग हो गई है पेचीदा,
कलम और थोड़ा धारदार करिए।
थोड़ा सा खुद से भी प्यार करिए।
ये इश्क का मुवामला है बर्खुरदार,।
जरा सा जीत को भी हार करिए।
हो जरूरत जंग में जो शहादत की,
कुरबान खुद को बार-बार करिए।
ठीक नहीं मजहबी सियासत करना,
इरादों का अपने इश्तिहार करिए ।
जुल्म की जंग हो गई है पेचीदा,
कलम और थोड़ा धारदार करिए।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-10-2018) को "पावन करवाचौथ" (चर्चा अंक-3137) (चर्चा अंक-3123) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
साभार धन्यवाद सर
हटाएंRation Card
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।